
जबसे AI की एंट्री हुई है दुनिया में धमाल मचा हुआ है.. हर एक क्षेत्र में लोग नौकरी गंवाने से डर रहे हैं.. मगर अफसोस की आज भी समाज में एक तब का ऐसा है जो अंधविश्वास में डुबकी लगाए बैठा हुआ है और ऐसी ही तस्वीर बिहार के एक कोने से सामने आई है जिसे देख लोग हैरान हुए बैठे हैं। बिहार के औरंगाबाद के महुआ धाम में भूतों का मेला लगता है ,इस मेले में हजारों की संख्या में लोग पहुंचते हैं । मान्यता है कि माँ अष्टभुजी उनकी सभी इच्छाओं को पूरा करती हैं। यहाँ हर साल चैत्र नवरात्रि के दौरान मेला लगता है.. जिसमें हजारों लोग आते हैं। इस मंदिर में आने वाले भक्त अक्सर भूत-प्रेत से ग्रसित होने का दावा करते हैं और यहाँ आकर अपने अनुभव को साझा करते हैं।
विज्ञान और तकनीकी विकास ने इंसान को चांद और मंगल पर पहुंचा दिया है। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस जैसे अद्भुत क्षेत्र इंसान के अस्तित्व को नई दिशा दे रहे हैं। लेकिन इन तमाम विकासों के बावजूद, हमारे समाज में अंधविश्वास की कुछ ऐसी परंपराएँ भी मौजूद हैं, जो विज्ञान की पहुंच से बाहर हैं। एक ऐसी ही अनोखी और विचित्र मान्यता बिहार के इस औरंगाबाद जिले में स्थित महुआ धाम में देखने को मिलती है। यहां हर साल आयोजित होने वाला एक मेला बहुत ही खास है – इसे भूतों का मेला कहा जाता है।
महुआ धाम, जो औरंगाबाद शहर से लगभग 35 किलोमीटर दूर कुटुंबा प्रखंड में स्थित है, एक प्रसिद्ध धार्मिक स्थल है। यहाँ स्थित माँ अष्टभुजी का मंदिर है, जिसे भक्तों का आस्था का केंद्र माना जाता है। इस मंदिर में हर साल चैत्र नवरात्रि के दौरान विशेष आयोजन होते हैं। इस आयोजन के दौरान हजारों की संख्या में भक्त आते हैं। इस स्थान की विशेषता यह है कि यहाँ पर लोग भूत-प्रेतों के बारे में बात करते हैं और दावा करते हैं कि वे इस स्थान पर आकर अपनी आत्मा की शांति प्राप्त करते हैं।
यहां होने वाले मेलों का मुख्य आकर्षण यह है कि इसमें तंत्र-मंत्र के माध्यम से भूत-प्रेतों को भगाने का दावा किया जाता है। यह मेला न केवल धार्मिक महत्व का है, बल्कि एक अद्भुत दृश्य भी प्रस्तुत करता है। भक्तों का कहना है कि इस स्थान पर आने के बाद उन्हें भूत-प्रेतों से मुक्ति मिलती है। यहां आने वाले लोग अपनी आत्मा की शांति के लिए इस स्थान पर आते हैं और बहुत से लोग यह दावा करते हैं कि उन्होंने यहां आकर भूत-प्रेतों के प्रभाव से निजात पाई है।
महुआ धाम में जब भक्त मंदिर के प्रांगण में लगे पेड़ के नीचे बैठते हैं, तो वो माँ अष्टभुजी की शक्ति के प्रभाव में आकर अपने आप ही झूमने लगते हैं। यह दृश्य देखने में बहुत ही अद्भुत और रहस्यमय होता है। कई बार भक्त बेहोश हो जाते हैं और कुछ लोग तो जमीन पर रेंगते हुए दिखाई देते हैं। यह सब उस समय होता है जब भक्त यह मानते हैं कि वे भूत-प्रेत बाधा से ग्रस्त हैं और यहाँ आकर अपनी मुक्ति की प्राप्ति करते हैं।
यह मेला वैज्ञानिक दृष्टिकोण से अंधविश्वास और मानसिक समस्याओं का परिणाम माना जाता है। चिकित्सा विज्ञान इसे मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी समस्याओं के रूप में देखता है। डॉक्टरों का मानना है कि इस तरह के अनुभव मानसिक दबाव और तनाव के कारण हो सकते हैं। हालांकि, इसके बावजूद महुआ धाम में इस तरह के आयोजनों में श्रद्धालुओं की भारी संख्या में भीड़ जुटती है। लोग यहाँ अपने अनुभव साझा करते हैं और विश्वास करते हैं कि यहां की शक्ति उन्हें शांति और मुक्ति दे सकती है।
महुआ धाम में आयोजित होने वाला यह मेला न केवल धार्मिक और सांस्कृतिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह सामाजिक दृष्टिकोण से भी एक अध्ययन का विषय बन चुका है। वैज्ञानिक और चिकित्सक इसे मानसिक स्वास्थ्य से संबंधित मामलों के रूप में देखते हैं, लेकिन आम लोग इसे एक अद्भुत अनुभव मानते हैं।
महुआ धाम का मेला इस बात का प्रतीक है कि कैसे अंधविश्वास और धार्मिक आस्थाएँ समाज में अपने स्थान बनाए रखती हैं। चाहे विज्ञान ने हमें चांद पर पहुंचा दिया हो या आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस इंसान के भविष्य को नई दिशा दे रहा हो, लेकिन समाज में कुछ ऐसे स्थल हैं जहां परंपराएँ, आस्थाएँ और अंधविश्वास आज भी मजबूत हैं।
इस प्रकार के मेलों में भाग लेने वाले लोग अपनी मानसिक और आत्मिक शांति की तलाश में आते हैं। वे यह मानते हैं कि इस स्थान पर आने से उन्हें भूत-प्रेतों से मुक्ति मिलेगी। महुआ धाम का मेला न केवल धार्मिक आस्थाओं का प्रतीक है, बल्कि यह मानव मन की जटिलताओं और विश्वासों का भी प्रमाण है।
समाज में चाहे कितना भी विज्ञान और तकनीकी विकास हो, लेकिन ऐसी जगहों पर आज भी पुरानी परंपराएँ और विश्वास जीवित हैं। यह हमसे यह भी सवाल करता है कि विज्ञान और आस्था के बीच कितनी दूरी हो सकती है और क्या यह विश्वास हमेशा मानव समाज का हिस्सा रहेगा?